11 December, 2007

ठेठ हिंदी का ठाठ

आज एक नकली हिंदी सब तरफ छायी हुई है. कारण कि जिसे देखो वह अंग्रेजी की बैसाखी के बिना सोचना ही नहीं चाहता. नतीजा यह कि वाक्य विन्यास हो या कहने का सलीका, सब पर अंग्रेज़ी की छाया है. जिससे हिंदी की पठनीयता बुरी तरह प्रभावित होती है. मसिजीवी

2 comments:

Rakesh Kumar Singh said...

बधाई

रवि रतलामी said...

हिन्दी चिट्ठाजगत् में पदार्पण पर स्वागत् और शुभकामनाएँ.

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