13 February, 2008

विमोचन

एक दलित लेखक की पुस्तक का विमोचन था.
महान आलोचक विमोचन के लिए मौजूद थे. प्रकाशक महोदय ने उनका परिचय कराते हुए कहा--
'आज हमारे बीच सदी के सबसे बड़े आलोचक विद्यमान हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी है. स्त्रियों और दलितों के योगदान का विशेष उल्लेख किया है. आज इनके बिना विश्वविद्यालयों में पत्ता तक नहीं हिलता.'
गदगद हुए आलोचक प्रवर ने कहना शुरू किया--'इन प्रकाशक महोदय का हिंदी साहित्य में विशेष योगदान है. इन्हें उभरती हुई प्रतिभाओं की सटीक पहचान है. इन्होंने नए लेखकों को मंच प्रदान किया है. उनकी रचनाओं को प्रकाश में लाए हैं. हिंदी साहित्य में इनका योगदान अविस्मरणीय है. यदि ये प्रकाशक महोदय न होते तो न जाने कितने क्रांतिकारी लेखक गुमनामी के अंधेरे में खो गए होते.'
भाषण के बाद उन्होंने बड़े सलीके से रैपर को खोला और पुस्तक को मुस्कराते हुए बड़ी अदा से कैमरे की ओर किया. चारों तरफ फोटो खिंचने लगे. मिठाइयाँ और नमकीन वितरित होने लगे. पत्रकार उनसे आगामी योजनाओं के बारे में सवाल पूछने लगे.
इसी बीच किसी ने कहा कि लेखक कहाँ है. कोने में सिमटा बैठा लेखक सकुचा गया कि आखिरकार किसी ने उसका ज़िक्र तो किया.
अचानक जैसे प्रकाशक को सुध आई--'हाँ, हाँ, भई तुम भी आगे आओ. ऐ..., ज़रा इनकी भी फोटो खींचना'